Wake Up Smit

This is my Blog, I'll write what I think, what I like to share with everyone. I do not claim to be the originator of all collections here. I get these through, email, books, movies amongst other sources; makin it difficult to always give credit to the Author. It is just my attempt to liven up LIFE which is in any case too serious. There is no discrimination - racial or otherwise involved. If you see something you do not like, please feel free to move on!

Friday, September 14, 2018

मोब लिंचिंग मे सोशियल मीडिया की भूमिका

2011 के वर्ष मे श्री सुब्रमानियन स्वामी द्वारा कोची तस्कर केरला नाम की आईपीएल टीम मे तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री की पत्नी का हाथ होने का ट्वीट किया था।  जिसके बाद इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया ने इस मुद्दे को बढ़ा आगे बढ़ाया। और उस टीम को भी आईपीएल से मैम्बरशिप खोनी पड़ी। ये शायद भारत देश के राजनीति और सामाजिक एवं मीडिया पे सोशियल मीडिया का पहला बड़ा प्रभाव था।

लोकतन्त्र का चोथा स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकारत्व मे इस सदी मे काफी बदलाव आए है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया का जन सामान्य मे व्याप एवं विशवास इस सदी की शरूआत से काफी बढ़ा है। 24 घंटे  न्यूज़ चलाने वाले पत्रकारत्व के चेनल ने देश के हर कोने तक समाचार को तेज और आसान तरीके से पहोचने का काम किया है। मगर यह मीडिया एक-से-अनेक की प्रणाली पर यानि की एक जगह से काही गई बात को अनेक लोगो तक पहुचाता है। जिसमे उस पत्रकारो की जवाबदारी और जवाबदेही काफी हद तक बढ़ जाती है।

सोशियल मीडिया इस से थोड़ा भिन्न यानि की अनेक-से-अनेक प्रणाली पर कार्य करता है। अर्थात, एक साथ एक से ज्यादा व्यक्ति, एक से ज्यादा व्यक्ति या व्यक्ति के समूह तक अपने विचार को प्रस्तुत कर शकते है। अपनी बात उन तक पहोचा शकते है। यह सोशियल मीडिया किसी भी सेंसरशिप के तहत नहीं आता इस लिए इस पर इस्तेमाल की जाने वाली भाषा के स्तर का अंदाज लगाना या उस पे वितरित मेसेज की पुष्टता करना असंभव जैसा है।

आज समाज के हर तबके के पास कमोवेश मोबाइल फोन, कोमपुटर या इंटरनेट की सुविधा प्राप्य है। व्हाट्स एप, फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशियल मीडिया और एप से व्यक्ति दुनिया के किसी भी कोने से अपने विचार लोगो के साथ शेर कर शकता है। किसी भी प्रसिध्ध नेता, अभिनेता, लेखक या खिलाड़ी से  सोशियल मीडिया के द्वारा सीधा संवाद किया जा सकता है, और अपने विचार, प्रशंषा या आलोचना को उनके साथ शेर किया जा शकता है।

एक तरीके से देखा जाय तो सोशियल मीडिया ने अमीर वर्ग और सामान्य वर्ग के बीच के फासले को काफी कम कर के एक नए आयाम, एक नया रास्ता खोल दिया है। जैसे लोक तंत्र मे “एक व्यक्ति – एक मत” का प्रविधान है। यानि की हर एक व्यक्ति एक समान है। सोशियल मीडिया मे भी यह एक मूल बात है की यहा एक मेसेज या वीडियो वाइरल होने पर कोई सामान्य व्यक्ति उतनी प्रसिध्धी प्राप्त कर लेता है, जहा पहुचने के लिए कई कलाकार और नेता सालो तक प्रयास करते है।

यह बात भी उतनी ही सही है की सोशियल मीडिया से मिली प्रसिद्धि उतनी ही तेज गति से चली जाती है जितनी जल्दी वो आई थी। इस लिए सोशियल मीडिया बेहद ही गति से बदलती हुई तस्वीर है जिसके रंग को एक अच्छा रंगरेज ही समज शकता है। सोशियल  मीडिया इस काल खंड  इतना प्रभावशाली है के ये मनुष्य समाज की जीवनशैली पर न सिर्फ प्रभाव छोडता है बल्कि वो उसकी सोच बदलने का भी माद्दा रखता है। किसी भी समाज की उपलब्धि उसके वैचारिक स्तर और जीवन शैली से प्रतिवादित होती है। व्यवहार और आचरण से उस समाज मे लोगो की मानसिकता पता लगा ने के लिए काफी महत्वपूर्ण वस्तु है।

मोब लिंचिंग एक काफी तनावपूर्ण शब्द है, जिसका जन सामान्य  अर्थ होता है के विचार, धर्म, जाति, सोच से समान मानस वाले लोगो का समूह, उनसे भिन्न मत रखनेवाले व्यक्ति पर एक सोची समजी साजिश के तहत हिंसा करे और उसे शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक तौर पे हानी पहोचाए। यह बात अपने आप मे इतनी घ्रिणास्प्रद है की “अहिंसा परमो धर्म” मे मानने वाले इस देश मे ऐसी घटनाए हो रही है।

मोब लिंचिंग की घटना  सामान्यत: एक व्यवस्थित सुनियोजित घटना क्रम मे की जाती है जिसे बाद मे, एक समाज, जाती, धर्म या देश के साथ जोड़ कर भावुकता और सहानुभूति प्राप्त करने का प्रयास होता है। कोई भी व्यक्ति अपने परिवार, धर्म, संस्कृति एवं राष्ट्र के प्रति काफी प्रेम, आदर और सन्मान रखता है, जिसपे वो गर्व करता है और उसे श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करता है। यह जन सामान्य व्यक्ति अन्य व्यक्ति के धर्म, संस्कृति एवं राष्ट्र को भी उसी आदर और सन्मान की द्र्श्टि से देखता है।

सोशियल मीडिया मे बिना किसी पुष्टि या पड़ताल किए कही से मिले, जाने या अंजाने भेजे गए मेसेज और विडियो को बिना ज्यादा कुछ सोचे फॉरवर्ड किया जाता है और इसे समान विचारधारा के लोगो तक बहुत ही तेजी से फैलाया जाता है। एक ही प्रकार के विभिन्न मेसेज धीरे धीरे उस व्यक्ति के जन मानस मे बेठ जाती है और उस की विचार क्षमता कुछ समय के लिए इनसे प्रभावित भी होती है।

पिछले दिनो, विविध स्थलो पर छोटे बच्चो को उठा कर ले जाने वाली और बाद मे  उन बच्चो से बाद मे अनैतिक काम करवाने वाली गेंग का एक वीडियो और मेसेज था। यह मेसेज मे शहर के नाम अलग थे लेकिन उसके साथ शेर किए जाने वाला विडियो एक ही था। यह विडियो मे  मोहल्ले मे कचरा इकठठा करने वाले लोग छोटे बच्चो को उठा के ले जाते है एसा दिखाया गया था।

इस का परिणाम यह आया की कई शहर और टाउन मे एसे किसी भी शंकास्पद व्यक्ति को देखे जाने पर उसको वह के लोगो द्वारा बहोत पूछताछ की गई और कई जगह उनको बहोत बुरी तरीके से मारा भी गया। कई जगह उनको अमानवीय तरीके से पीट कर पोलिस को भी सोंपा गया। इन मे से कई लोग बेकसूर निकलने पर छुट भी गए लेकिन उन व्यक्ति पर लगा वो दाग, वो आरोप नहीं निकला।

वो भीड़ या शहर के लोग मे से कई शायद ये जानते भी होंगे के ये बच्चा चोरी करने वाले गेंग के सभ्य नहीं है लेकिन उस विडियो के प्रभाव और अपने प्राणप्रिय बच्चो को खोने का भय उन्हे ये सोचने और यह कदम उठाने के लिए प्रेरित करता है।

इसी तरह एक ही धर्म के लोगो के बीच रहते अल्प संख्यक लोग भी अपनी अलग विचार सरणी या रहन सहन के लिए इस प्रकार के टकराव कर कारण बनते है। यह भविष्य मे विकट समस्या भी बन शकती  है, जो की समाज मे बटवारे का एक कारण बन सकती  है। इस लिए एसे समाज विरोधी दैत्य को बड़ा होने से पहले इस समाप्त कर देना बहुत जरूरी है।

जिस तरह मोब लिंचिंग की समस्या को बढ़ावा देने मे सोशियल मीडिया काफी महत्वपूर्ण किरदार अदा करता है उसी तरह इसके इलाज  भी सोशियल मीडिया की जड़ीबूटी से आसान एवं संभव है। सोशियल मीडिया एक “आभासी सत्यता” जैसा माध्यम है जहा कही सुनी या देखी गई बाते शायद सुकून देती है लेकिन उसका असली दुनिया मे कार्यान्वन बहुत ही मुश्किल है।

इन्न घृण कृत्यों से हमारे महान देश को बचान हर एक नागरिक का कर्तव्य है। सोशियल मीडिया पर कोई भी माहिती या मेसेज लोको के साथ शेर करने से पहेले इसकी सत्यता परखना जरूरी है। यधपि कोई व्यक्ति या समूह एसी घटना क्रम मे शामिल होता है तो तुरंत पोलिस एवं प्रशाहन को इतल्ला कर एसी घटना को रोक्न चाहिए। यह भी एक प्रकार की देश सेवा ही है।
सोशियल मीडिया उस प्रकार की तलवार है जिस का ठीक से ईस्तमाल न करने पर खुध को ही चोट लगाने की बड़ी संभावना रहटी है। इस लिए समाज की एकजुटता और देश के विकास के लिए इस विषय मे हम सब का आत्म संयम बेहद आवश्यक एवं अनिवार्य है।

आओ भेदभाव को रख के परे, हम एक दूसरे से जुड़े।

प्यार और मानवता का संदेश, ले कर हम सब आगे बढ़े

बैर न हो इंसान का इंसान से, खुशी से सब के दिल भरे,

मिटादे सब फासले और नफरते, एक नए भारत की और चले॥

Wednesday, August 15, 2018

Blogger Bash! Or Blogger Waste!

! 3-4 days ago,. I seen on Facebook that there will be "Blogger Bash" in Bhuj! I was too excited as wow, I will get chance to see creative people of Bhuj n have chance to interact with fellow bloggers!

I registered and they started sending me instructions about program! Blog supposed to be written in 15 mins and to publish it in next 15 mins and one with maximum likes and comments will be winner! Also topic will be given on place only!

I said, ok let's try! Then on day before event I received msg that u need to bring pen and papers to write a blog! N I also have to bring my laptop/mobile for this! I said ok! I was confused that how can I write blog on paper! Then in morning on event's day I again got msg that whole blog thing will be on "Mobile/Laptop".

So, I kept both of them with me! Now at time of event, Reporting Time was 4:30 and most of contestants took permission from their office and reach their on time, where event was not started till 5. When asked they replied " In India, which event starts on time?"

Next point while discussing rules they said there will be two categories. 1. For content writing and 2. For Social Media King/Queen! All contestants will get 15+15 mins for their task. I.e. 15 mins for writing and 15 mins for like/chat/interaction as described in msg but after few seconds they said, "You can get utilize 30 mins as u wish" so if I put pic in 2 mins I have 28 mins to ask ppl to like my post! N other guy who write amazing way and take 15 mins will get only 15 mins.

That's part of strategy, how we do it? Question remains, how they check plagiarism or how the likes are not added by software! On this they replied " I am Professor, I know everything!"

They claimed program was delayed because they had tie up with forest department and their official are late! But no one from forest department came! There was no affiliation mentioned on banner or anywhere! Even in press note next day when there was detailed information was given but no mention of affiliation with Forrest Department! So did organisers lied about their affiliation with Govt. Department?

Now two pics that shared, which all contestants supposed to share on their page or wherever they like!  One of them is about Rakshak van which is near Bhuj and other one is Local Folks new business venture of Revision! Ofcourse they can do that, it's their choice!

Now the most important question arrived! How they choosen winners! For content writing there were two judges and both of them did perfect job!

Question arrive at Social Media King winners. There are two winners. Person who got second no. Is having professional account on Instagram and other apps. As there was no guidelines given by Organisers, That can be allowed!

But the winner is having 342 Friend on FB. While having Google search his name u can't get any other profile! What he did to win Social Media King! Where he put it! How many likes he got? How many shares he got? How many people check that page??  None of this answered by anyone there! Further even currently there is no such post on his FB also!

Every contestant received a certificate but it has no value as it's not signed!! Yes a printed page with our names on it but not a single organisation authority signed it!

So after all this lethargic exercise, we came to know two things. A. None of organisers knows about blogging B. A practical examples of how to not arrange a "Blogging Bash"

P.S. I am not writing because I am sore looser. I heartily congratulate winner of content writing. He is just amazing writer! But just wasting other people's time on *Blogger Bash* is wrong!

Tuesday, August 14, 2018

Rakshak Van - Pride of Kutch


A Place of Joy! A Place of Fun! A Place of Patriotism!! It was 1971 and India was under tremendous pressure to bow down against their arch rivals pakistan after they cleared Airforce Base of Bhuj in war. That time our honorable lady fighters took this courageous initative and make that airforce base in a night! Today we are celebrating this tremandeous achievement of theirs by this Rakshak Van! It’s not just another place to hangout on Sunday! It’s having emotion, patriotisam and love we share for our country. 
Let’s relive moments of courage, hardship and joy at Rakshak Van. It’s just 10 Kms from Bhuj.


Saturday, June 23, 2018

રેવા થી સમદ્ર કિનારા સુધી ની સફર!!

"આની પાછળ કાઇંક અર્થ હશે જ. નહિ તો આ સદીઓ સુધી ચાલે નહિ, નિરર્થક વસ્તુ જાતે જ સમય જતા પૂર્ણ થઇ જાય." આવી કંઈક વાત રેવા ફિલ્મ માં સાંભળી ને મજા આવી ગઈ.

એક અમેરિકા માં રહેલો જીવેલો વ્યક્તિ માં ભારત ના એક ભાગ માં આવી ને ગરીબ લોકો ને એક નદી ની સેવા કરતા અનેપરિક્રમા વાસી ની સેવા કરતા જુવે ત્યારે જે લાગણી થાય તેને આબેહૂબ જીલી લીધી છે આ ફિલ્મ માં.  "રેવા" એટલે અત્યાર સુધી ની સર્વ શ્રેષ્ઠ ત્રણ ગુજરાતી ફિલ્મ પૈકી એક. તેના વિષે ઘણું લખાયું, વંચાયું કહેવાયુ, સંભળાયું, એટલે એના વિષે મારે વાત નથી કરવી। પણ વાત ની શરૂઆત રેવા થી કરી કારણ કે આજે જે વાત શેર કરું છું એની વાત પણ અહીં થી જ શરુ થઇ.

રેવા જોઈ ને 3 દિવસ પછી "તત્વમસિ" લઇને વાંચવાનું શરુ કર્યું। પછી 10 દિવસ માં તો તત્વમસિ, લવલી પાન હાઉસ , અકૂપાર, તિમિરપંથી ,અતરાપી સમુદ્ન્રાતિકે  વાંચી લીધી.


વર્ષો થી માનવ સંસ્કૃતિ આમ જ ચાલે છે. વ્યક્તિ જન્મે છે, ઉછરે છે, ભણે છે, નોકરી ધંધો કરે છે, પરણે છે, બાળકો પેદા કરે છે, એમને મોટા કરે છે, માતા પિતા ની સેવા કરે છે. તે મૃત્યુ પામે છે ને પછી તે ધીમે ધીમે  ભુલાઈ જાય છે અને તેનો પુત્ર કે પુત્રી આ જ ઘટમાળ માં થી પસાર થાય છે. આપણે સૌ આ બધી જ ઘટના માં થી પસાર થઇએ છીએ કે આજુ બાજુ લોકો ને પસાર થતા જોઈએ છીએ.


ધ્રુવ દાદા ની વાર્તા ઓ માં આ જ વાતો છે. ક્યારેય ન કહેવાયેલી ને ન સંભળાયેલી, છતાં દિલ ની નજીક,  અનુભવાયેલી વાતો। "અતરાપી " નવલકથા માં મુખ્ય નાયક  સારમેય છે અને તે કહે છે કે  "જ્ઞાન એવમ બંધનમ ". જ્ઞાન એ જ બંધન છે. તો શું આ સાચું છે ? આ બ્લોગ લખતી વખતે વિચારું કે કેટલા લોકો વાંચશે? મારા વખાણ કરશે? કે પછી આ બકવાસ છે એવું કહેશે? કે પછી મારા વાંચન પ્રત્યે માન થશે એમને। આ વિચારું એ જ બંધન છે. ખરેખર જીવન માં "હું પણું " છોડવું એ સિંહાસન છોડવા  કરતા પણ અઘરું છે, ખેર હું પણુ છોડવા સિન્હાસન પણ છોડવું જ પડતું હશે ને !!!


લવલી  પાન  હાઉસ નો નાયક યાત્રિક  ( બોલવાનું નામ ગોરો, લખવાનું યાત્રિક ) કહે છે " ભૂત, પિસાચ છે  કે નહિ તે વિષે લોકો ચોક્કસ શંકા કરે છે, પણ નસીબ બાબતે એવો અનુભવ નથી." તો શું આપણે જે છીએ એ નસીબ ના લીધે છીએ. કે પછી આપને આપણી મહેનત થી નસીબ ને બદલી શકીએ છીએ કે પછી જ્યાં આપણા પગ ટૂંકા પડે ત્યાં અથવા તો જ્યાં બીજો બાજી મારી જાય ત્યાં આપણે નસીબ પર નાખી દઈએ છીએ.

ધ્રુવ દાદા ની વાર્તાઓ શરૂઆત થી અંત સુધી એક સીધી સાદી સફર છે જે જીવન ના ઉત્તર ચડાવ  ની વાતો કરે છે ને આપણે પહોંચાડે છે એવી જગ્યા એ કે જ્યાં જીવન ને જોવાની દ્રષ્ટિ જ બદલાઈ જાય છે.

લવલી પાન હાઉસ માં વલીભાઈ પાન ની દુકાન ધરાવે છે, આખો દિવસ પાન બનાવે છે, સફેદ ઝભ્ભો પણ પહેરે છે પણ એમાં એક પણ દાગ નથી, આ વાત કીચડ માં રહી પણ કમળ ની જેમ ખીલતા વ્યક્તિત્વ ની છે! આ વાત ને ભ્રષ્ટ અધિકારીઓ વચે કામ કરતા એક પ્રમાણિત અધિકારી સાથે સરખાવી શકાય!

તિમિર પંથી... અંધારા માં ચાલતો વ્યક્તિ.... આમ જુઓ તો ચોરી એટલે રાતે ઘર માં ઘુસી ન કીમતી વસ્તુ ઉપાડી ને નાસી જાય એ ચોર!! પણ આ જ વાત ને એકદમ સરળ રીતે અને છતાં પણ ખુબ ગૂઢ અર્થ સાથે ધૃવ ભટ્ટ એ લખી છે. તે સમાજ ના નિયમો તેમના રીતિરિવાજો અને તેમના જીવન ને ખુબ નજીક થી જોવાનો લહાવો આ વાર્તા માં મળે છે



જેમ બક્ષી બાબુ મેળાવડા ના માણસ છે એમ ધ્રુવ દાદા મન ના માણસ છે. તેમની વાર્તા માં સહજતા, સુકુન અને શાંતિ એક સાથે અનુભવાય છે. સ્થૂળ રૂપે ચાલતું સામાન્ય જીવન પણ સુક્ષ્મ રીતે તો એક અનેરી ઝડપ થી ચાલતું જ હોય છે! "સમુદ્રંતિકે" માં એક દિવસ પણ અહી કેમ નીકળે એમ વિચારતો યુવાન ત્યાં વર્ષો જીવી લે છે એ પણ એકદમ ઉલ્લાસ થી... ત્યારે સમજાય છે કે ખરેખર માણસ જેવી જણસ બીજી કોઈ નથી!




Sunday, October 23, 2016

दोस्ती : जीवन भर का लगाव या पल भर की पहेचान

"मित्र एसा कीजिये, जैसे सर को बाल,
काट काट के काटिए, फिर भी तजे न खाल"



मानवी एक सामाजिक जीव है. और उससे भी ज्यादा वो एक भावुक जीव है. दुनिया के हर एक व्यक्ति, चाहे वो अमीर हो, गरीब हो, गोरा हो, काला हो, लड़का हो, लड़की हो, कोई भी हो लेकिन वह हर एक मानवीय संवेदना को महसूस करता है. और उसे जीने की कोशिश करता है.


जीवन में कई क्षण ऐसे आते है जो हम लोग या तो खुद महसूस करते है या किसी करीबी के जीवन में महसूस करते है. ख़ुशी के क्षण, गम के क्षण, हर्षाश्रु के क्षण. बेटी की बिदाई, बेटे का अव्वल आना, भाई की नोकरी लग्न, बहन के घर नए महेमान का आगमन, परिवार में मृत्यु, ये सब जीवन के बहुत अहम् क्षण होते है जो हम सब ने जिए है या फिर करीबी को इन क्षणों में देखा है.


लेकिन इन सब क्षण में जब हम जीते है तब हमें कोई चाहिए जो आपके साथ खड़ा रहे. जो आपको किसी भी हालत में आपके साथ कंधे से कन्धा मिलके खड़ा रहे. और इसे ही शायद दोस्ती कहते है. कृष्णा सुदामा से ले कर जय और वीरू  की दोस्ती के किस्से हम पढ़ के बड़े हुए है .

आज के युग में फेसबुक पे हज़ार मित्र हो शकते है. व्हाट्स एप पे गुड मोर्निंग के सन्देश भेजने वाले आपके सेंकडो दोस्त हो शकते है. लेकिन इन सब को दोस्त मानना उचित नहीं कहा जा शकता. इन सब के लिए अंग्रेजी में एक बहुत खुबसूरत शब्द है " known strangers" अर्थात आप जिन्हें जानते तो है पर फिर भी वो अजनबी है.


ये known strangers और दोस्त के बिच का तफावत धुन्धने में कई बार पूरी जिंदगी ख़तम हो जाती है. और जब हम लोग किसी व्यक्ति को दोस्त समजने लगते है तो हमारी आशा बढ़ जाती है. और हम चाहते है की उसे भी  वही चीज़ पसंद हो जो हम कहे. या फिर हम उनसे वह काम की आशा रखते है जो हम उनसे करवाना चाहते है.

आप जब भी कोई संस्था के साथ जुड़ते है फिर वो आपका स्कूल हो या ओफ्फिस या फिर कोई और संस्था. आप वहा के लोगो के साथ संपर्क में आते है और उनसे बात करते ही एक सामान विचारधारा किसी एक या एक से अधिक मुद्दे पर बनती है. और जिसे हमारा दिमाग उन्हें अपना दोस्त मानने लगता है. और धीरे धीरे समय के साथ ये दोस्ती गहरी होती जाती है.

लेकिन यह जरुरी नहीं की आप हमेशा उसी संस्था में रहे या वो उसी संस्था में रहे. जब साथ रहेने का समय कम हो जाता है तो व्यवस्था के नाम पर वो मित्रता एक औपचारिकता में परिवर्तित हो जाती है. तब सामने वाले की अपेक्षा पर खरा नहीं उतरने पर दूसरा व्यक्ति दुखी हो जाता है और सम्बन्ध में एक तनाव आ जाता है.

दोस्ती में कोई मोल भाव नहीं होता पर आज के युग में सच्चा दोस्त ढूँढना बहुत ही मुश्किल काम है पर उससे मुश्किल काम है सच्चा दोस्त बनाना. और जब आप का कोई दोस्त आप पे अपना विश्वास खो दे तो ये समजना जरुरी है की चुक न तो आपकी है न तो आपके दोस्त की. चुक है विचारो की एवं ग़लतफ़हमी को दूर करने की.

जीवन में कम से कम एक दोस्त एसा जरुर रखे जो आपको " तू पागल है क्या" बोल शके और आप हां कहे के उसका जवाब दे शके.

Sunday, February 7, 2016

શિક્ષકોનું બહારવટું – શાહબુદ્દીન રાઠોડ

[‘મારે ક્યાં લખવું હતું ?’ પુસ્તકમાંથી સાભાર.]
એક વાર શિક્ષક-મિત્રો સૌ ચર્ચાએ ચડ્યા. સર્વશ્રી શાહ, શુક્લ અને સાકરિયા, દોશી, દક્ષિણી અને દવે-જોષી, જાની અને મુલતાની – રાઠોડ, રાણા, ચૌહાણ અને પઠાણ તેમ જ અન્ય શિક્ષક-મિત્રો, જિલ્લામાંથી આવેલા નિરીક્ષકો સૌ એવા ચર્ચાએ ચઢ્યા કે બપોરના ભોજન માટે વારંવાર વિનંતી કરવા છતાં કોઈ મંચ છોડતા નહોતા.
દોશીસાહેબે કહ્યું : ‘ભારતનું ભાવિ વર્ગખંડોમાં આકાર લઈ રહ્યું છે. દેશના ભાવિ નાગરિકોને ઘડવાનું દુષ્કર કાર્ય આપણે કરી રહ્યા છીએ, છતાં સમાજમાં આપણું જોઈએ તેવું માન નથી, સન્માન નથી, સ્થાન નથી. આપણે નીકળીએ ત્યારે વાલીઓ અદબથી ઊભા નથી થઈ જતાં. આ પરિસ્થિતિ શોચનીય છે, વિચારણીય છે.’ શ્રી સાકરિયા સાહેબે કહ્યું : ‘સન્માન એ વ્યક્તિની યોગ્યતા પ્રમાણે આપોઆપ પ્રાપ્ત થાય છે કે એ મેળવી લેવું પડે છે ? આ મુદ્દો સ્પષ્ટ થાય તો વધુ સારું.’ તરત જ શિક્ષકો બે વિભાગોમાં વહેંચાઈ ગયા. એક વર્ગે કહ્યું : ‘જો આપણામાં લાયકાત હશે તો સન્માન આપોઆપ મળી જશે. “માનવતાનું કાર્ય કરતાં કીર્તિ એ આવી પડેલી આપત્તિ છે.” આવું ડૉક્ટર આલ્બર્ટ સ્વાઈટ્ઝર કહેતા.’ જ્યારે બીજા વર્ગની એવી દલીલ હતી, ‘માગ્યા વગર મા પણ પીરસતી નથી, માટે સમાજ સન્માન આપશે એવી વ્યર્થ આશામાં જીવવા કરતાં કર્મવીરની જેમ મેળવી લેવા પ્રબળ પુરુષાર્થ કરવો.’
શ્રી ઠાકરસાહેબે કહ્યું : ‘પ્રયત્ન કરવા છતાં પણ જો સન્માન ન મળે તો ? તો શું કરવું ?’ અને અચાનક ઊભા થઈ શ્રી રાણાસાહેબે કહ્યું : ‘બહારવટે ચડવું.’ રાણાસાહેબના ચહેરા ફરતું તેમનું વર્તુળ જોવા સૌ પ્રયાસ કરવા માંડ્યા. આવેશમાં અને વીરરસના સંચારને લઈ રાણાસાહેબનું અંગ ધ્રૂજવા લાગ્યું. તેમણે કહ્યું : ‘બહારવટે ચડવું ! પ્રાચીન કાળમાં જ્યારે સ્વમાનનો ભંગ થતો ત્યારે વીર પુરુષો બહાર રહી વટ રાખતા, જેથી બહારવટિયા કહેવાતા. આપણે પણ આપણા માનને ખાતર, સ્થાનને ખાતર બહારવટે ચડવું.’ સમગ્ર શિક્ષણજગત માટે આ વિચાર ક્રાંતિકારી હતો, જલદ હતો, પોતાની અને સમાજની ઊંઘ ઉડાડી દે તેવો હતો. નવી ભરતી થઈ હોય તેવા યુવાન શિક્ષકો પોતાનું શૌર્ય અને પરાક્રમ દાખવવા થનગની ઊઠ્યા. અમુકે શોર મચાવ્યો, ‘બહારવટે ચડવું ! બહારવટે ચડવું !’ અમુક ખંધા અનુભવી શિક્ષકોએ બહારવટે ચડી, લૂંટ ચલાવી, જો માત્ર સંપત્તિ જ પ્રાપ્ત કરવી હોય તો તે બહારવટે ચડ્યા વગર પણ કઈ-કઈ રીતે સહેલાઈથી મેળવી શકાય તેવા ટૂંકા રસ્તા સૂચવ્યા, પરંતુ એ માન્ય રહ્યા નહિ. પરંતુ નિષ્ઠાવાન, બુદ્ધિમાન ગણાતા દવેસાહેબ જેવાની વાત વિચારવામાં આવી. દવેસાહેબે કહ્યું : ‘હક્ક-રજાઓ વ્યર્થ જાય તે પહેલાં મેળવી લ્યો. પ્રાયોગિક ધોરણે બહારવટાનો પ્રાથમિક અનુભવ પ્રાપ્ત કરો અને એમાં જો સફળતા મળે તો જ કાયમી ધોરણે બહારવટું અપનાવવું, નહિતર નહિ.’ શ્રી દવેસાહેબની વાત સૌને વાજબી લાગી. જેને જે પ્રકારની રજા પ્રાપ્ત હોય તે પ્રમાણે રજા-રિપોર્ટો ભરવાનું નક્કી થયું અને પ્રથમ બહારવટાનો અનુભવ મેળવી પછી જ અંતિમ નિર્ણય લેવો એવું સર્વાનુમતે નક્કી થયું.

બીજે દિવસે સૌએ ગૌરવભેર શાળામાં પ્રવેશ કર્યો, વિધિસર રજા-રિપોર્ટો રજૂ કર્યા અને શાળાનો ત્યાગ કરી સૌ ચાલી નીકળ્યા અને પહોંચ્યા બજારમાં. બજારમાંથી પ્રાથમિક ખરીદીનું મહત્વનું કાર્ય સૌ પ્રથમ પૂર્ણ કરવાનું હતું તેનો પ્રારંભ કરવામાં આવ્યો. શાહીના બ્લ્યુ, લાલ અને લીલા રંગના ખડિયા ખરીદ્યા. મહત્વની બાબત હોય તો જ લાલ શાહીનો ઉપયોગ કરવો અને જે મંજૂર કરવામાં આવે ત્યાં લીલી શાહીથી લખવું – આમ નક્કી થયું. પચીસ ઘા કાગળની ખરીદી થઈ. ઉપરાંત ફૂટપટ્ટીઓ, પેન્સિલો, રબ્બરો, પેનો અને બોલપેનો, ફાઈલો અને થોડાં પુસ્તકો ખરીદવામાં આવ્યાં. રાષ્ટ્રીય શાયર ઝવેરચંદ મેઘાણીભાઈના ‘સોરઠી બહારવટિયા’ અને ‘ દરિયાપારના બહારવટિયા’ વગેરે પુસ્તકો જે મળ્યાં તે લેવામાં આવ્યાં. અસલ કાઠિયાવાડી દોહાસંગ્રહ અને શૌર્યગીતોના સંગ્રહો વસાવવામાં આવ્યા. આટલી સામગ્રીથી સજ્જ થઈ અર્ધી-અર્ધી ચા પીને સૌએ વનવગડાની વાટ લીધી. ‘ચાલ્યો ઘોર રજનીમાં ચાલ્યો, માર્ગ જ્યોતિ અનુપમ ઝાલ્યો’ – આવું ગુજરાતીના શિક્ષક શ્રી બાબરિયાએ ગાયું. બાંડિયાવેલીના રસ્તે પ્રયાણ કરતાં સૌ માંડવામાં આવી પહોંચ્યા. મહાનદીના કાંઠે ભેખડો જોઈ આચાર્ય શ્રી રાઠોડે કહ્યું : ‘બહારવટિયાને રહેવાને અનુકૂળ એવા ભયાનક સ્થાનમાં આપણે આવી પહોંચ્યા છીએ.’ એટલે નદીના કાંઠે બગલા બેસે એમ શ્વેત વસ્ત્રોમાં શોભતો શિક્ષક-સમુદાય બેસી ગયો.
ચોકસાઈ એ જીવનમાં સ્વીકારવા જેવો સદગુણ છે, માટે આપણે પ્રત્યેક કાર્ય ચોકસાઈપૂર્વક કરવું – આમ વિચારી કાર્યના પ્રારંભમાં બે-ત્રણ ઘા કાગળ વાપરી નાખવામાં આવ્યા. અનેક પ્રકારનાં પત્રકો બનાવવામાં આવ્યાં. ઉદાહરણ રૂપે એક પત્રક નંબર ‘અ’ – એક અનુક્રમ નંબર, ઘટનાસ્થળ, લૂંટમાં મેળવેલ માલ – ‘આ’ ખાનાનાં પાછાં બે પેટા ખાનાં – રોકડ અને દાગીના, લૂંટમાં બતાવેલ પરાક્રમ, લૂંટનો માલ ખરીદનારની સહી, લૂંટનો માલ વેચનારની સહી અને છેલ્લું ખાનું રિમાર્કનું. કોઈએ સૂચન કર્યું, ‘ત્રણ ઠેકાણેથી ટેન્ડર લઈ કોઈ પણ કાર્ય કરવું, જેથી ઑડિટ ઓબ્જેક્શનની તકલીફ ન રહે.’
પત્રકોનું કાર્ય પૂર્ણતાએ પહોંચ્યા પછી જુદી જુદી સમિતિઓની રચના કરવામાં આવી. સૌ પ્રથમ શસ્ત્ર-સમિતિનું નિર્માણ થયું. તેના પ્રમુખ અને મંત્રી નિમાઈ ગયા. સાથે નોંધ કરવામાં આવી : ‘હાલ તુરત આપણે દંડા, સોટીઓ, લાઠીઓ, ચાકુ તેમ જ ગડદિયાથી કામ ચલાવવું, પરંતુ આર્થિક સધ્ધરતા પ્રાપ્ત થતાં જાનહાનિ કરી શકાય એ કક્ષાનાં હિંસક શસ્ત્રો પણ વસાવી લેવાં, જેનો ઉપયોગ સામાન્ય સભામાં સર્વાનુમતે ઠરાવ પસાર થયા પછી પ્રમુખશ્રીની મંજૂરી પછી થશે.’ ત્યાર બાદ અન્વેષણ-સમિતિની નિમણૂક થઈ, જેનું કાર્યક્ષેત્ર હતું ક્યાં-ક્યાં લૂંટ કરવા જેવી છે, ક્યાં ધાડ પાડવામાં ઓછું જોખમ રહેલું છે તેની તપાસ કરવી અને અહેવાલ કારોબારીમાં રજૂ કરવો. તેના હોદ્દેદારો પણ નિમાઈ ચૂક્યા. હવે રચના થઈ લલકાર-સમિતિની, જે યુદ્ધ જેવા પ્રસંગો આવી પડે તો શૌર્યગીતો ગાઈ, વીરરસના દુહાઓ રજૂ કરી, સૌમાં જોમ અને જુસ્સો જગાવે. આ સમિતિનું કાર્ય અને હોદ્દેદારોની નિમણૂકની કાર્યવાહી પૂરી થઈ. વ્યાયામ-શિક્ષક શ્રી પઠાણના સૂચનથી એક શિસ્ત-સમિતિની રચના કરવામાં આવી. સમગ્ર યુદ્ધનું સંચાલન શિસ્તબદ્ધ રીતે થાય તેની જવાબદારી તેમને અને શ્રી મોથલિયાને સોંપવામાં આવી. યુદ્ધપ્રસંગે શિક્ષકગણની આગેવાનીનું સુકાન આચાર્ય શ્રી રાઠોડે સંભાળવું અને તેમને અચાનક ક્યાંક કાર્યક્રમ નિમિત્તે જવાનું થાય તો આગેવાની શ્રી મુલતાનીએ લેવી તેમ નક્કી થયું. જો કે યુદ્ધના સમયમાં કોઈએ રજા લેવી નહીં એવું પણ સાથે નક્કી થયું, છતાં જરૂરિયાત ઊભી થાય તો ધોરણોસરની કાર્યવાહી કરવી એવી જોગવાઈ પણ કરવામાં આવી. ઉતારા અને ભોજન-સમિતિઓની પણ રચના થઈ અને આવા કપરા કાળમાં તેમણે પણ પોતાનાં સ્થાનો સંભાળી લીધા.
અન્વેષણ-સમિતિના કન્વીનર શ્રી સી.બી. ઠાકરે સમાચાર આપ્યા કે અહીંથી એક જાન પસાર થવાની છે. તેમની પાસે કેટલી સંપત્તિ અને આભૂષણો છે તે અન્વેષણનાં પૂરતાં સાધનો પ્રાપ્ત નહિ હોવાથી જાણી શકાયું નથી, છતાં આપણી અપેક્ષાઓથી વધુ જરૂર હશે એવું કહ્યા વગર હું રહી શકું તેમ નથી. અન્વેષણ-સમિતિના રિપોર્ટ પર ગંભીરતાથી ચર્ચાવિચારણા થઈ. જાન પર ધાડ પાડવાનો અને લૂંટ ચલાવવાનો નિર્ણય લેવામાં આવ્યો. તમામ સમિતિઓ કાર્યરત બની ગઈ. વ્યાયામ-શિક્ષક પઠાણે યુદ્ધની પૂર્વતૈયારી રૂપે જે કવાયત કરાવી તેમાં જ મોટા ભાગના શિક્ષક-મિત્રો થાકી રહ્યા, છતાં ફરજમાં અડગ રહ્યા. શ્રી બાબરિયાએ બુલંદ અવાજે ‘સૌ ચલો જીતવા જંગ બ્યૂગલો વાગે, યાહોમ કરીને પડો ફતેહ આગે’ ગીત લલકાર્યું. આચાર્યશ્રી શાહબુદ્દીન રાઠોડે શિક્ષકગણનું સેનાપતિપદ સંભાળ્યું અને સૌ નીકળી પડ્યા. આ તરફથી શિક્ષક-સમાજ અને સામેથી આવતી જાન સામસામાં આવી ગયાં. આચાર્યશ્રીએ બુલંદ અવાજે પડકાર કર્યો : ‘ખબરદાર, જ્યાં છો ત્યાં જ ઊભા રહેજો. અહીં ભીષણ રક્તપાત થશે, સ્ત્રીઓના આક્રંદ અને બાળકોનાં રુદનથી વાતાવરણ કરુણ બની જશે. આ સ્થિતિ સહી લેવી એ અમારા માટે અસહ્ય હોવાથી હું આપ સૌને નમ્ર વિનંતી કરું છું કે આ સમસ્યાનું નિરાકરણ મંત્રણાના મેજ પર થાય. આ હત્યાકાંડ રોકવા શાંતિભર્યા માર્ગો પણ છે જ. વાટાઘાટોનાં દ્વાર પણ ખુલ્લાં છે જ, પરંતુ આ બધું આપના સાનુકૂળ પ્રતિભાવ પર આધાર રાખે છે.’
જાનવાળા આચાર્યશ્રીના નિરર્થક લંબાણભર્યા પ્રવચનમાં કંઈ સમજ્યા નહિ – માત્ર આટલું જ સમજ્યા કે ‘આ છે કોઈ ફંડફાળો ઉઘરાવવાવાળા, પણ આમ વગડામાં દુ:ખી કેમ થાય છે તે સમજાતું નથી.’ જાનવાળાની વાતો સાંભળી આચાર્યશ્રીએ કાયમની ટેવ પ્રમાણે કહ્યું : ‘બંધ કરો અવાજ અને શાંતિપૂર્વક હું પૂછું તે પ્રશ્નો સાંભળી તેના પ્રત્યુત્તર આપો’
પ્રશ્ન પહેલો : તમારી સાથે સામનો કરી શકે તેવા હથિયારધારી વોળાવિયા કેટલા ?
પ્રશ્ન બીજો : તમે ક્યાંથી નીકળ્યા છો ?
પ્રશ્ન ત્રીજો : તમે ક્યાં જવાના છો ?
પ્રશ્ન ચોથો : તમારી પાસે રોકડ અને દાગીના કેટલાં છે ?
પ્રશ્ન પાંચમો : તમે કુલ કેટલાં માણસો છો ?
જાનવાળા કહે, ‘કોક નાટક કંપનીવાળા રમતે ચડી ગયા લાગે છે.’ સામતુભાબાપુએ બંદૂક કાઢી, કાર્ટિસ ચડાવ્યા અને પડકાર કર્યો : ‘અલ્યા કોણ છો ?’ જવાબમાં સૌ સમિતિના હોદ્દેદારોનાં રાજીનામાં આવી ગયાં. આચાર્યશ્રીએ ગૌરવભેર કહ્યું : ‘હાલ તુરત આપણે માનભેર આ અભિયાન મુલતવી રાખીએ છીએ.’ શ્રી પઠાણે આદેશ આપ્યો : ‘પીછે મુડેગા… પીછે મુડ..’ સૌ ફરી ગયા અને પાછા તળાવને કાંઠે આવી પહોંચ્યા. તાત્કાલિક સામાન્ય સભાની મિટિંગ યોજવામાં આવી અને આચાર્યશ્રી રાઠોડે રજૂઆત કરી : ‘આ સમગ્ર વ્યવસાયનું નિરીક્ષણ કરી, પૃથક્કરણ કરી, પ્રત્યક્ષ અનુભવ પ્રાપ્ત કરી, વિશ્લેષણ કર્યા બાદ એવું જણાય છે કે આ વ્યવસાય આપણી ચિત્તવૃત્તિને પ્રતિકૂળ હોવાથી ત્યાજ્ય છે.’ સ્ટેશનરી સૌએ વહેંચી લીધી અને પુસ્તકો શાળાની લાઈબ્રેરીમાં ભેટ આપી સૌ રજા-રિપોર્ટ કૅન્સલ કરી, શિક્ષણ-કાર્યમાં લાગી ગયા.

Source:http://archive.readgujarati.in/sahitya/?p=2023

Sunday, January 3, 2016

Kutch : Adopted Home of Narendra Modi

It was December 2002, Narendra Modi imarge as strong leader after winning 127 out of 183 seats with cleansweep in Gujarat. It was moment of joy, victory and celebration for BJP. But at same time, There were 2 things which refelcted this result. This was verdict for Narendra Modi: A Hindu Hriday Samart and There was only one district were BJP lost badly. KUTCH

BJP and Narendra Modi won only 1 out 6 seats in Kutch. Statisticaly saying 6 seats are not big bunch of 183 seats it's just 3.25 % of seats and Modi can easily ignore in this landslide victory. But If elections won by statistics, Mathamaticans rules the nation. Kutch is largest district in India and also it covers almost 25% land of Gujarat.  Narendra Modi knews that he can't ignore this.

In 2002 Election, Godhra riots were important point in whole gujarat but In kutch, it was period of post earthquake and people were not happy with local politicians, who didn't help much in that critical time of Kutch.


Kutch was in miserable situation due to earthquake and no development, no company. It was assumed as border area and desert, where no CM cares and for buerocrates it was punishment posting. but After 2003, slowly things started changing and It was Kutch's Adopted son Narendra Modi, being Chief Minister of Gujarat played crucial part of changing lives of 20 Lakh Kutchis.

As kutch is geographically far from all metro cities, It was tough to bring mega projects here. But he bring Adani to Mundra Port which is today biggest port in India. Also Company like AMW, Welspun, BKT Tyres and many other companies came to Kutch in last 10 years. This infuse money in kutch and also give job oppertunity to Kutchi youth. But this was not main thing that developed NaMo's adopted home. His master stroke for Kutch is TOURISM.


Yes, Being a district which has sea, hill, desert, Kutch is very picturesque and beautiful. But it was raw, There are no places to show like there are in Palace and Desert of Rajsthan. So he made them.

I would like to share 3 examples how Modi Changed his home.


KRANTI TEERTH

Narendra modi with Ashes of
Krantiguru
It was 2003, Narendra Modi did first step to show his affaction towards Kutch. Krantiguru Shaymji Krishna Verma was freedom fighter from Kutch but as he died in Geneva, Switzerland, His ash were in safe custody and his last wish was to bring it to Free India in home town. Modi took innitiative and bring that ash in his own hands from Geneva. Also when he reach to India. He had special Yatra, where the road show had been done to cover most Gujarat for patriot ash of Shyamji Krishna Verma, He also granted land and build Kranti Teerth, where iconic image of India House made. Which is one of historical monument in Britain and been witness of struggle of Indian Fight for Freedom. and Today Lakhs of People visited and feel inspired. Even after 12 years of this, when NaMo visited Britain as PM, in his speech he talked about this and also urge people to visit this patriot place.

Now this played huge part in development of Mandvi, Beach, Vijay Vilas Palace and many other places have been full with many people coming to visit this. More than 20-25 big hotels had open in the area which is a small gesture of showing how it is developed.



KUTCH KARNIVAL

In 2005, Narendra Modi coined new term called "Kutch Karnival", In december month of every year, He started to celebrate Kutch Karnival in Bhuj where whole city is decorated and there is parade like one in New York City on 4th July. This was huge boost for moral of Kutchhi People to feel there is one of them.



Result had been shown in 2007 Gujarat Election, It was looking tough for Narendra Modi to win this election because this time it was not Narendra Modi: Hindu Hriday Samart, but Narendra Modi: Development Icon. and may be it was first time it was agenda was on development and nothing else. but Kutch voted for him. BJP won 5 out of 6 seats in Kutch. Although it is always said that term "Maut Ke Saudagar" made him win the election, but more importantly it was his work which Gujarat and specially Kutch appriciated.

After this victory NaMo had took biggest step towards development of Kutch.

Rann Utsav.

10 years ago, If you ask someone to go to banni , He decline instantly even in some cases people
PM NaMo with HM and Ministers in white desert
leave their jobs just to not go to khavda and banni villages. But in 2008, Modi started a Rann Utsav at Dhordo Village where only white desert in world is situated. Tourism Department tied up with private event management firm to make it grand success.
More than 500 Tents are made every year for 4 months and approx 10-15 lakh people visit it every year.

Dhordo Village is having population of approx 350-400 people and they earn almost 15 Crore in last 5-7 years due to rann utsav. Started with 8 Bhunga (Tent) in Gateway to Rann Resort, today there are more then 100 bhunga are there which are used as homestay.

He ask Amitabh Bachchhan to promote Kutch Rann Utsav and in few years it is most successful event of Gujarat. There was 3 day Rann Utsav when it was celebrated first time. Today it goes on more than 4 months and lakhs of people visit it.People are earning and living peacefully due to this small initiatives by Modi.


and after becoming PM, he hasn't forget is adopted land. He visited Kutch for 3 days form 18 to 20 dec. This is longest period when PM has been stayed in india other than his official home 7 RCR.

I would like to clarify that I am not BJP or "BHAKT" but this is just to show how much small points changed life of lakhs of people.

Thank You Narendra Modi... Adopted Son of Kutch..